पेड़ पौधों के बिना जिंदगी अधूरी: कटते हरे पेड़ और सिकुड़ते जंगल मानव त्रासदी के संकेत - ताखर

Jun 5, 2022 - 14:22
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पेड़ पौधों के बिना जिंदगी अधूरी: कटते हरे पेड़ और सिकुड़ते जंगल मानव त्रासदी के संकेत - ताखर

विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष 
पेड़ो के बिना मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती । कल्पना करें धरती पर यदि पेड़ नहीं होंगे तो मनुष्य को ऑक्सीजन कहां से मिलेगी, क्योंकि ऑक्सीजन का उद्गम एकमात्र पेड़ ही होते हैं। यह भी कटु सत्य है कि ऑक्सीजन के बगैर मनुष्य जीवित नहीं रह सकता । आज नई सड़को  के लिए, नए मकानों व कल करखानो के लिए  विकास के नाम पर हम लगातार पेड़ काटते जा रहे हैं और नए पेड़ नहीं लगा रहे । जंगलों को रोज काटा जा रहा है । नतीजतन जंगलो का क्षेत्रफल तेजी से सिकुड़ता जा रहा है । फैक्ट्रियां कल कारखाने निजी व्यावसायिक वाहन आदि हर रोज करोड़ों लीटर कार्बनडाइ ऑक्साइड गेस छोड़ रहे हैैं । नए पुराने करोड़ों की संख्या में वाहन सड़को पर दौड़ते हुए हर समय करोड़ो लीटर कार्बनडाइ ऑक्साइड गेस छोड़कर पर्यावरण के समक्ष नई चुनौतियां प्रस्तुत कर रहे हैं। लेकिन इस आर्थिक युग मे पेड़ लगाने की ओर न सरकारों का ध्यान है और न ही हमारी आम व्यक्ति की जीवन शैली ऐसी रही जो पर्यावरण की तरफ ध्यान दें और उसी को संतुलित बनाए रखें। पर्यावरण संतुलन बिगड़ने से नित्य प्रतिदिन जलवायु परिवर्तन हो रहा है। इस वर्ष कई शेरो का तापमान 81 डिग्री जे भी पुर चला गया जो शुभ संकेत नही है । हम देख रहे हैं ग्लोबल वार्मिंग से आज पूरा विश्व जूझ रहा है । इसी असंतुलित पर्यावरण के चलते आज बड़े बड़े ग्लेशियर पिघल रहे हैं। बड़ी मात्रा में ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा हैं जो आनेवाले दिनों में बहुत बड़ी चुनौती के रूप में हम सभी के सामने होगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के वायु प्रदूषण डेटाबेस की मानी जाए तो असंतुलित पर्यावरण का असर भारतीय नागरीय व्यवस्था में सर्वाधिक देखा जाएगा क्योंकि जैसा की रिपोर्ट में बताया गया है विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित 20 शहरों में से 14 भारत में हैं इनमें दिल्ली, मुंबई, कोलकाता,  चैन्नई, वाराणसी, कानपुर,  लखनऊ, पटना ,  लुधियाना आदि शामिल हैं। चौंकाने वाला सच यह भी है देश की राजधानी दिल्ली की हालत नवंबर से मार्च महीने के बीच  गैस चैंबर जैसी हो जाती है  जहां जहरीली गैस इतनी अधिक बढ़ जाती है जिससे लोगों को सांस तक लेना भी मुश्किल हो जाता है । एक रिपोर्ट के मुताबिक हमारे देश में वायु प्रदूषण के चलते होनी वाली बीमारियों की वजह से प्रतिवर्ष 10 - 12 लाख  लोग मौत के मुंह में समा जाते हैं । सर्वाधिक कार्बन उत्सर्जन के मामले में दिल्ली दुनिया के 10 शहरों में शामिल है । यहां पहाड़नुमा कूड़े के ढेरों से निकलती जहरीली गैसे , औद्योगिक इकाइयों से निकलते जहरीले धुंए के अलावा सड़कों पर वाहनों की बढ़ती संख्या कार्बन उत्सर्जन का बहुत बड़ा कारण है। कहा जाता है कि अगर दिल्ली  व देश के अन्य अत्यधिक प्रदूषित शहरों में वायु प्रदूषण पर नियंत्रण पाना है तो लोगों को सार्वजनिक परिवहन को अपनाना होगा तथा बड़े पैमाने पर पौधारोपण को बढ़ावा देकर हरयाली बढ़ानी होगी ।

एक पेड़ रोज औसतन 230  से 250 लीटर ऑक्सीजन देता है जो अपनी पूरी आयु में लगभग 8 - 11 टन ऑक्सीजन देता है तथा 12 - 14 टन कार्बनडाइ ऑक्साइड ग्रहण कर सकता है । एक पेड़ औसतन 3 से 4 लोगो की ऑक्सीजन की पूर्ति कर सकता  है जब कि इस समय देश मे औसतन एक पेड़ 12 से 15 लोगों को ऑक्सीजन दे रहा है जो चिंता का विषय है । इस आलेख के साथ मैं अपने ही गाँव दलेलपुरा की एक तस्वीर साझा कर रहा हूँ जहाँ आज से 30-35 साल पहले हजारों पेड़ होते थे जो आज सीमट कर सिर्फ सैकड़ो में रह गए हैं । जब हम बच्चे थे तो बसंत प्रारंभ होते ही पेड़ लगाते थे लेकिन आज के नौ जवानों को पेड़ लगाने में ज्यादा रुचि नहीं रही। प्रकृति को थोड़ा संभालने का काम कुछ सामाजिक संस्थाएं या कुछेक गिने चुने लोग जरूर कर रहे दिखते हैं लेकिन  ये ऊंट के मुंह में जीरे के समान ही है ।

विश्व पर्यावरण दिवस पर हम सब को मिलकर एक मुहिम चलाने की जरूरत है जिसके माध्यम से लोगों को पेड़ काटने  से रोका जाए व अधिक से अधिक पेड़ लगाने के लिए प्रेरित किया जाए। हम सब को मिलकर ये कोशिश करनी चाहिए कि  हर आदमी हर साल  कम से कम एक पेड़ तथा घरों में तुलसी के चार - पाँच पौधे जरूर लगाए । शहरों में जहाँ जगह की कमी है वहा घरों की बालकनी, टेरेस व छतों पर गमलों में पौधे लगाए जा सकते हैं ताकि घर का वातवरण हमेशा शुद्ध बना रहे ।

विश्व पर्यावरण दिवस के लिए मैंने कई औषधीय गुणों से भरपूर जीवनदायिनी 24 घंटे ऑक्सीजन प्रदान करने वाले तुलसी के 51 व निम के 51 पौधे तैयार किये है जिनको लोगो मे निःशुल्क वितरित किया जाएगा। इसी तरह हम सब मिलकर पर्यावरण रक्षा हेतु सार्थक कदम उठाएं तो वह दिन दूर नहीं जब हमारा पर्यावरण पूरी तरह संतुलित हो सकेगा और हम स्वच्छ हवा में सांस ले सकेंगे मगर जरूरत जोरदार पहल करने की है केवल बातों से या बड़े-बड़े स्लोगन लिखने से पर्यावरण सुधरने वाला नहीं है। दुःख की बात है कि पर्यावरण संतुलन की सारी चर्चाएं बंद वातानुकूलित इमारतों में होती हैं जो खर्चे की निरर्थक अर्थव्यवस्था को तो जन्म दे सकती है लेकिन मानवता को संतुलित स्वस्थ पर्यावरण नहीं दे सकती।

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