दूर दूर से आवत है जन मन कर विश्वास: सबके दुःख को हरत है बाबा लक्कड़दास

गांव सूरतगढ़ में लक्कड़ बाबा की एक ऐसी समाधि जहाँ जाने से लोगो के होते है दुख दूर

Aug 10, 2022 - 03:25
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दूर दूर से आवत है जन मन कर विश्वास: सबके दुःख को हरत है बाबा लक्कड़दास

अलवर जिले के थानागाजी कस्बे से करीब 17 किमी दूर ग्राम सूरतगढ़ के कुंडों पर बाबा लक्कड़दास के समाधि स्थल शांति आश्रम पर बताते है कि दूर दूर से अनेको दूर दराज के गांव कस्बो शहरों व प्रान्तों से अपने दुःख दर्द लेकर श्रद्धालु भक्त आकर सच्चे मन से जो बाबा के धौक परिक्रमा लगा मन्नत मांगते है, वह पूरी होती है--जब उनके दुःख दर्द दूर हो मनोकामना पूरी हो जाती है तो भक्त बाबा के दर पर आकर भोग प्रसादी चढ़ा यही कहते है--दूर दूर से आवत है जन मन कर विश्वास सबके दुःख को हरत है बाबा लक्कड़दास।
ग्राम सूरतगढ़ से लक्कड़ बाबा आश्रम पर रोज जाकर सेवा पूजा करने वाले भक्त योगेश कुमार शर्मा,मोहन सिंह,प्रागेश भट्ट,राजेश शर्मा,अभ्यानन्द शर्मा आदि बताते है कि करीब सवा सौ साल पहले एक हाथ मे लक्कड़ लिये दूसरे में डोलची लिए शरीर पर एक चददर लपेटे सिर के बाल फैलाये ना मालूम कहा से एक फक्कड़ साधु आया और गांव सूरतगढ़ में घरों में खाने को कुछ मांगने लगा,जब पहले ही घर गया तो एक औरत ने ठंडी रोटी होने से बाबा को मना कर दिया तो बाबा बोला बेटा संकोच मत कर वो ठंडी रोटी ही देदे, इस तरह रोज ना मालूम पहाड़ में से कहा से आता और रोज खाने को माग कर अपने पेट मे खाने जितना डोलची में डलवा ले जाता,

बताते है कि सब्जी रोटी,राबड़ी,छाछ दही जो कुछ मिलता एक उसी डोलची में डलवाता और दूर सुनसान पहाड़ की तलहटी में बैठ मजे से खाता जो मन मे आता किसी को कुछ भी बोलता जो वह किसी को बोलता वो शब्द ही उस आदमी के लिये वरदान हो जाते,कभी कभी वो कुंडों पर भी रहता,लक्कड़ हाथ मे लिये होने से गांव वाले लोग उस बाबा को लक्कड़ नाथ पुकारने लगे,ऐसे ही कुछ दिन बीते कि सूरतगढ़ से क्यारा जाने वाले पैदल रास्ते मे एक बड़े इमली के पेड़ के नीचे रह कर बड़े बड़े लक्कड़ लगा धुना तपने लगा,रोज गांव से स्वयं घरों से मांग कर लाता और खाता ऐसे ही दिन गुजरते रहे बाबा बातों ही बातों में गांव वालों को कुछ कहता वो ही वरदान बन जाते बाबा की वाणी सत्य होने से चर्चाएं होने लगी,

ऐसे ही एक रोज बाबा को ईमली के पेड़ में एक बड़ा जंगी सांप बाबा को नजर आया,बाबा ने उसको पुकारा की यहाँ आ निचे,सांप कहा सुने,जब सांप नीचे नही आया तो बाबा ने पकड़ लिया और उससे करने लगा बाते,बहुत देर तक बाबा उस सांप से खेलता रहा इसी दौरान बाबा उस सांप को अपने शरीर पर घुमाने लगा और बोला काट जब सांप ने कही नंही काटा तो बाबा बोला यह शरीर गन्दा है मेरी जीभ को काट इस तरह उस सांप ने बाबा को काट लिया और बाबा को सूरतगढ़ में कुंडों पर शांति आश्रम पर गाजे बाजे से समाधि दी गई थी जहाँ आज भक्तों ने भव्य मंदिर बना रोज सेवा पूजा करते है, दूर दूर से श्रद्धालु भक्त आकर बाबा की समाधि की परिक्रमा कर मन्नत मांगते है, श्रावण मास में बाबा की पुण्यतिथि पर जागरण व मेला तथा भंडारा किया जाता है।

एक रोज जब बाबा के हाथों में हुए फफोले:- गांव के बुजुर्ग बताते है कि एक रोज बाबा धुनें पर तप रहा था तो बाबा के हाथों में जलने के फफोले देख भक्त बोला बाबा ये क्या हुआ तो बाबा ने बताया कि गांव में एक बुढ़िया रोज मेरा नाम लेकर फूटी हंडिया में राबड़ी बनाती है और मैं मजबूरन उसके हाथ लगाए रहता हूं राबड़ी पकने तक इससे हाथ मे फफूले हो गए,बताते है कि गांव के कुछ लोगो ने उस बुढ़िया के घर जाकर उसे फटकार लगा उससे राबड़ी के लिये नई हंडिया मंगवाई।

बाबा ने शरीर छोडने से पहले अपने भण्डारे के खुद बांटे पर्चे:- गांव के बुजुर्ग बताते है कि गांव में बाबा रोज खाने के लिये डोलची में मांग कर लाता इसी दौरान कही से बाबा को बच्चो की एक कॉपी हाथ लग गई, फिर क्या था बाबा लगा उसके पन्ने फाड़ने और हर आने जाने वाले को उस कॉपी के पन्ने फाड़ अपने भण्डारे के पर्चे अजीब अजीब नाम लेकर लोगो को देता बोलता ये दिल्ली दे आना,ये बम्बई,ये गुजरात इस तरह पूरी कॉपी को फाड़ फाड़ पर्चे बांट दिये लोग थोड़ी दूर ले जाकर फेक देते और बोलते बाबा पागल है लेकिन जब बाबा ने अपने बताए अनुसार उसी दिन शरीर छोड़ा और समाधि के समय अनेको दूर दराज से अनेको शहरों कस्बो प्रान्तों से  कई हजारों की संख्या में लोग आए तो पता लगा बाबा ने स्वप्न में जाकर इनको यहाँ बुलाया है।

सच्चा संत ही रुकता है बाबा की समाधि पर:- संत शिरोमणि बाबा लक्कड़ दास जी महाराज ने यह दृष्टांत दिया कि यहां पर वही संत रुक पाएगा जो सही अर्थों में तपस्वी होगा और जिसे दुनियादारी से कोई सरोकार नहीं होगा यह बात आज भी पूरी सच्चाई के साथ उजागर हो रही है यहां पर कोई संत नहीं रहता फिर भी समाधि स्थल पर पूरा अनुशासन देखने को मिलता है यह बाबा लक्कड़ दास जी का ही अनुशासन है जो श्रावण मास में संपूर्ण रात्रि भजन संध्या और दूसरे दिन 10000 लोगों का भंडारा आयोजित होता है इसके साथ ही वर्ष पर्यंत जो भक्त लोग बाबा की समाधि के परिक्रमा कर अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए हाजिरी लगाते हैं उनके सभी कष्ट दूर होते हैं 

बाबा का अखंड धूणा चर्म रोगों को दूर करता:- गांव के बुजुर्ग बताते है कि बाबा के धुनें से जो कोई चर्म रोगी भक्त सच्चे मन से भभूत लगा बाबा से अरदास करता है उसके सभी चर्म रोग दूर होते है।

मेले का होता है आयोजन:- गांव सूरतगढ़ सन्तो की तपोभूमि भी रहा हैं यहाँ बहुत से सन्त शिरोमणियो ने तपस्या की है, गांव में उतर दिशा की तरफ गांव से लगते महज 500 मीटर की दूरी पर आम के सुरम्य बगीचे में सन्त बाबा लक्कड़ दास की समाधि पर भव्य मंदिर बना है जहां भक्त जन पूर्ण आस्था के साथ सेवा पूजा करते हैं, भाद्रपद मास में बारस को बाबा का विशाल जागरण भजन संध्या के बाद त्रयोदशी को बाबा लक्कड़ दास का मेला व भंडारा होता है जिसमे कई हजारो की संख्या में भक्त लोग पहुंचते है, बाबा की समाधि स्थल के दर्शन करते है तथा रोजमर्रा के घरेलू जरूरत के सामानों को खरीदते हुए भंडारे में प्रसादी लेकर मेले का लुत्फ लेेते हैं।

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