जिले की नदियां वेंटीलेटर पर कईयों ने तोड़ा दम, अतिक्रमण से नहीं बचाया तो खो देंगी अपना अस्तित्व

सहायक नदियों व नालों का अस्तित्व खत्म होने के कगार पर, मानसून बदला तो हो सकता है संकट पैदा

Nov 19, 2021 - 00:59
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जिले की नदियां वेंटीलेटर पर कईयों ने तोड़ा दम, अतिक्रमण से नहीं बचाया तो खो देंगी अपना अस्तित्व

राजस्थान के पुर्वी द्वारा व अरावली पर्वतमाला से घिरे  अलवर जिले में छोटी बड़ी दर्जनों नदियां साहिबी, रुपारेल, जहाजवाली, सरसा, नहावनी, भगाणी, ढिगारियावाली, अरवरी नदियां बरसाती मौसम में कल कल करती बहती रहती रही है, वही झरने के रूप में इनका पानी वर्ष के अधिकांश समय में नदी के क्षेत्र में हमेशा बहता रहता आया है, लेकिन बिगड़ते मौसम चक,  मानसून की अनदेखी, बहाव क्षेत्र में बढ़ते अतिक्रमण के कारण यहां की अधिकतम नदियां अपना स्वरूप व बहाव क्षेत्र बदल रही है। यही नहीं ये अब वेंटिलेटर पर अपने प्राण बचाने के लिए तड़प रही हैं । नदियों की उपयोगिता पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने, जैवविविधता, पर्यावरण संरक्षण में बहुत बड़ा सहयोग रहा। लेकिन पिछले दो-तीन दशकों में आए मौसमी परिवर्तन, बढ़ते तापमान, वर्षा काल के घटने, नदियों के किनारे बढ़ते अतिक्रमण के कारण इन नदियों का अस्तित्व ही खतरे में आने के साथ ही बहाव क्षेत्र सिकुड़ सा गया ।  वहीं इनकी सहायक नदियां वह नाले अपना अस्तित्व खोने के कगार पर पहुंच गए जो बड़ी चिंता का विषय है। कहीं पर अतिक्रमण के कारण कृषि भूमि में कन्वर्ट हो गई ,तो कहीं पर बहु मंजिलें मकान बना दिए गए, यही नहीं नदियों के बहाव क्षेत्र में जो छोटे-छोटे नाले इन को आगे बढ़ाने का काम करते थे उनको समतलीकरण कर वहां प्लाट काट दिए गए । नदियों पर बढ़ते इस प्रकार के अतिक्रमण से यह साफ जाहिर हो रहा है कि यदि नदियों के अस्तित्व को नहीं बचाया गया तो आने वाले एक से डेढ़ दशक में नदियां अपना अस्तित्व खो कर मृतप्राय हो जाएंगी तथा आने वाली पीढ़ी इनको पहचान नहीं पाएगी कि यहां किसी प्रकार की नदी भी हुआ करती थी , वहीं यदि  मौसम मेहरबान हुआ तो एक विशेष प्रकार की समस्या का भी सामना करना पड़ सकता है, तथा मानव निर्मित आपदा अपना विशेष रूप धारण कर त्राहि-त्राहि मचा सकती है,  कानुन् के तहत् नदियों के बहाव क्षेत्र में किसी भी प्रकार की गतिविधियों का होना गुनाह होता है, कृषि नहीं कर सकते, बावजूद इसके यहा लोग प्लाट काट रहे हैं। ज़िले की सबसे बड़ी नदी रुपारेल व साहिबी दम तोड़ने की स्थिति में पहुंच गई, वहीं इनकी सहायक नदियां वह नाले जो दर्जनों किलोमीटर से तेज प्रवाह के साथ इनमें आ कर अपना मिलने के साथ ही नदी के स्वरूप को बनाएं रखने में बहुत बड़े सहयोगी रहे,साहिबी की सहायक नदी ढिगारिया वाली जो गढबस्ई के पहाड़ों से निकलती है,नहावनी जो रामपुर के पहाड़ों से आती है तथा खरकड़ी कला से निकलने वाली चतरपुरा वाली नदियों के सत्तर फीसदी हिस्से अतिक्रमण की चपेट में पहुंच चुके वहीं रुपारेल की सहायक नदियों का अस्तित्व ही खत्म होने के कगार पर पहुंच गया जो पारिस्थितिकी तंत्र के साथ ही वन, वन्य जीव व वनस्पति के लिए बड़ा ख़तरा है। नदियों के बहाव क्षेत्र व इनकी सहायक नदियां वह नालों में बढ़ता अतिक्रमण जितना ग़लत है उससे ज्यादा चिंता करने व अतिक्रमण पर ध्यान देनेवाला विषय है।एल पी एस विकास संस्थान के प्रकृति प्रेमी व निदेशक राम भरोस मीणा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि समय रहते हुए सरकार,समाज व  सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा  नदियों के इस बिगड़ते  स्वरूप को मद्देनजर रखकर इन्हें बचाने का सफल प्रयास करना बहुत जरूरी हो गया है। जिससे नदियों को बचाने के साथ ही आगामी समय में उत्पन्न होने वाले संकटों से आम जन को बचाया जा सके।

  • लेखक:- राम भरोस मीणा

    (प्रकृति प्रेमी)

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